न भेजो ऐसे द्वार प्रभु...! जहां चोखट न लांघ पाऊ...!! न कदमो को रोक सकू मैं...! बस दरवाजे की सांकल बन जाऊ...!! न भेजो ऐसे परिवार प्रभु...! जहां जन्म से ही पराई कहाऊ...!! माँ बाबा को बोझ लागु मैं...! जहां मौल से मैं ब्याही जाऊ...!! न भेजो ऐसे संसार प्रभु...! जहां खुद को सलामत न पाऊ...!! हर एक आँख से घूरी जाऊ मैं..! और हर गली मैं दबोची जाऊ...!! न भेजो ऐसे अन्धकार प्रभु...! जहां अंधे लोगो में गिनी जाऊ...!! रौशनी भरने की कोशिश करू मैं...! या खुद आग मैं जला दी जाऊ....!! न भेजो प्रभु .. न भेजो....!!! हम हमेशा कहते है.."SAVE GIRLS", " STOP FEMALE FOETICIDE".. पर क्या कभी आपने सोचा है.. हम जिस बेटी को दुनिया में लाना चाहते है .. क्या वो हमारी दुनिया में सुरक्षित है..???
आ चल एक कदम और चलते है । दूर डगर नापने की बात करते है ॥ फूलो को हाथो में समेट, पानी से आकाश की रंगोली भरते है।। एक कदम और चलते है ।। आ मिल शाम को भोर बनाये। आ मिल जोर से शौर मचाये ॥ सुरों को धुनों की मिटटी से मलते है , आ चल एक कदम और चलते है ।। ..................... साथ चलते है ॥
The Happy man is the man who lived objectively, who had free affection and wide interest, who secure his happiness through these interest and affection. To be the recipient of affection is a potent cause of happiness. The main reason of unhappiness is that he thinks only about cause of his unhappiness. He continues to be self -centered and therefore does not get outside. Although this difficulty is real, there is nevertheless much that he can do if he has rightly diagnosed his trouble. So think Objectively not Subjectively
जय हो
ReplyDeleteआपकी कवितायें सहजता से गंभीर बातें कहती हैं
ReplyDeleteसुम्मी....!!!
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