कभी हसती हूँ..... तो कभी रोती हूँ ......!!
तो कभी खुद को सांत्वना देती हूँ ......!!
फिर दूजे ही पल खुद को बेसहारा पाती हूँ ......!!
पता नहीं क्यों अब तो हर चीज को मुझसे बेर सा हो गया है......!!
कहने को तो अपना पर.. नसीब ही गैर सा हो गया है.....!!
कभी कोसती हूँ ओरो को जो मुझे समझ नहीं पाते ......!!
तो कभी खुद को जो कभी सफल नहीं हो पाती हूँ ..........!!
आईने में देखती हूँ खुद की ही आँखों को....!!
कोरो में फसी पानी की बूंदों को .........!!
या फिर यूँ कहिये..आँखों से ओझल हसी को ढूंडती हूँ......!!
तो कभी खुद से ही घिन्ना के खुद को भी नहीं निहार पाती हूँ......!!
अब तो एक एक पल बहूत भरी सा लगता है.......!!
रात को सुबह कर और सुबह को रात का इंतज़ार रहता है.....!!
मन में बस यही बात रहती है.......!!
किसी तरह ये रात कट जाये ....... !!
बस किसी तरह ये दिन निकल जाये.......!!
जिन्दगी ने इतनी ठोकर दी है.....!!
की अब तो जीने की वजह भी नहीं ढूंड पाती हूँ.......!!
बहुत बढ़िया सुमन जी....!!
ReplyDeleteपड़ा नहीं फर्क अनोखी जुबान लिखने से /
जमीन...जमीं ही रही मेरे आसमान लिखने से...
रहा जिस इंसान से हर घडी ताल्लुक मेरा
वो बन सका ना मेरी जान...."जान" लिखने से....!!
..... शुक्रिया...!!
very nice no words to say anything
ReplyDeleteसुमन जी
ReplyDeleteनमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें