होती ख़ामोशी से कुछ बात रात के साथ..!
फैले हुए सन्नाटे को सुन के चुप्पी के साथ..!!
सोचती हूँ कभी ख़ामोशी के बारे में..
जो चुप रहती है हर पल... और
जो सिमट जाती है हर रात के साथ...!!
न अपने मन की बताती है...
बस खो जाती है अँधेरे के साथ...!!
कभी सोचा है तुमने.???
ये क्या चाहती है.???
चाहती है कुछ झिलमिलाहट
चमकते चाँद के साथ...!
अँधेरे को बदलना
बिखरते उजाले के साथ..!!
और क्या चाहती है जानते हो.???
अपनी चुप्पी को तोडना
मुस्कराहट के साथ...!
और गुजार देना सारी उम्र
तुम्हारे साथ के साथ...!!
चाहती है कुछ झिलमिलाहट
ReplyDeleteचमकते चाँद के साथ...!
अँधेरे को बदलना
बिखरते उजाले के साथ..!!
और क्या चाहती है जानते हो.???
......वाह ! कितनी सरलता से कितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने ।
बधाई !
लाजबाब प्रस्तुति
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