लगा ठोकर हर उस पत्थर को ..
जो सामने आये तेरे..
हर रस्ते को अपनी लगन से सजा ..
न डर गिरने से .. जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
पथ को पैरो से नाप चल तू..
अपनी उम्मीद की बाहों को बड़ा ले....
फूल समझ काँटों पे चल तू..
न डर मुरझाने से ..जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
उठा निगाहे, आसमां पे टिका..
न दबा चाह को धरती के बोझ से..
बस उड़ने दे सपनो को मन की उड़ान से ..
न डर टूटने से.. जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
बड़ा हाथ अपने धूप को पकड़ ले ..
मुट्ठी में सूरज को बंद कर ले..
अँधेरे को डरा अपने इशारो पे..
न डर जलने से.. जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
हस के कर सामना हर मुश्किल से...
दूर कर उदासी को अपने चेहरे से...
थाम लूगी तेरा हाथ, मैं हर मोड़ पे .
न डर रोने से ....जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
तेरी इच्छा शक्ति..!!!
कमाल का लिख डाला है बेहद ख़ूबसूरत .... लिखते रहिये...!!Wahh ...!!
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteWELCOME to--जिन्दगीं--
Thanks a lot Dheerendra ji.. :)
ReplyDeleteअँधेरे को डरा अपने इशारो पे..
ReplyDeleteन डर जलने से.. जब मैं हूँ साथ तेरे...!!!
.......बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ ।
प्रेम के प्रति आपकी बेहतरीन सोंच इस सुन्दर-सी कविता में प्रतिबिंबित हो रही है.
ReplyDeleteवाह.....!!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति...
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