तेरे आँगन में चेहेकना चाहती थी... ऊँगली थाम चलना चाहती थी...!
तेरी ममता की छाव में... माँ मैं भी खिलना चाहती थी...!!
मैं बेठी थी अँधेरे में आंख मूंद के, प्यारे से सपने लिए...!
पायेगी तू मुझे ढूंढ़ के एक प्यारी सी मुस्कान लिए...!!
तेरे आँचल से खेलना चाहती थी... माँ मैं भी खिलना चाहती थी...!
न पापा को था प्यार मुझसे.. दादी भी थी पोते की आस लिए...!!
डरते थे दोनों ही मुझसे... कही आ न जाऊ घर बसने के लिए...!
पापा की दुलारी बनना चाहती थी... माँ मैं भी खिलना चाहती थी...!!
बनाते सब तरकीबे... मिलते डॉक्टर ओझा से तुझको साथ लिए...!
जो थे तैयार मुझे मरने को... बेठे हाथो मैं हथियार लिए....!!
सबकी दुनिया देखना चाहती थी.. माँ मैं भी खिलना चाहती थी...!
तुझको महसूस किया मैंने... तुझसे ही सांस ली बस दो पल के लिए...!!
होता सुकून मुझको अगर रहती साथ मेरे तू जिन्दगी भर के लिए...!
तेरी गोदी में सिर रख के सोना चाहती थी.. माँ मैं भी खिलना चाहती थी...!!
Stop murder in womb....
good...liked it.
ReplyDeleteVery true words An exceptional message! Thank you!
ReplyDeleteNice blog..and u write very well...keep it up,cheers!
ReplyDeleteVery touching.....keep it up suman ji
ReplyDeleteThanks a lot Sanjay Bhaiya..
ReplyDeleteYour blog is very interesting. I am loving all of the information you are sharing with everyone
ReplyDeleteFrom Computer Addict
Thanks a lot.. :)
ReplyDeleteAn exceptional message! Thank you!
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