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पुजारिन......!!!













मैं तो तेरी पुजारिन हूँ प्रभु, न जानू मैं तेरा पूजन....!
न उपासना का ज्ञान मुझे, जानू तो बस तेरा सिमरन ....!!

हर पलछिन तेरा नाम जपु मैं, करू मैं तेरा चिंतन....!
फिर क्यों फासे कष्ट जाल में देके मुझको जीवन....!!

कैसे प्रभु तुम मेरे जो उद्धार न सको मेरा मन ....!
कैसे पाप किये मेने जो कर न सको तुम नियोजन .....!!

न मंगू मैं वैभव सुख का, न मांगू धन का लोभन....!
मांगू इतने कष्ट में तुझसे घिस घिस बन जाऊ में कुंदन....!!

तुझसे इतनी आस करू मैं भर दो दुख से दामन ....!
न इच्छा हसने की मुझको, रोऊ मैं भर-भर अखियन.....!!

तेरी भक्ति को कर्म मनु मैं करू तुझको जीवन अर्पण...!
मैं तो तेरी पुजारिन हूँ प्रभु, करू मैं  तुझको नमन.....!!

Comments

  1. अति सुंदर रचना...मैं तो तेरी पुजारिन हूँ प्रभु, न जानू मैं तेरा पूजन...!न उपासना का ज्ञान मुझे, जानू तो बस तेरा सिमरन ....!!!!!

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  2. teri yaad aati he lekin tu nahi aata,teri pyaas jagti he lekin tu nahi bujhata,teri hasrat uthti he lekin poori nahi hoti,tera dard milta he lekin ab saha nahi jaata.kab miloge manmohan ab raha nahi jaata.........

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  3. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
    बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है

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  4. मैं तो तेरी पुजारिन हूँ
    ......एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  5. अनोखी लेकिन सच्चे मन की कामना

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न भेजो प्रभु ....!!!

न भेजो ऐसे द्वार प्रभु...! जहां चोखट न लांघ पाऊ...!! न कदमो को रोक सकू मैं...! बस  दरवाजे की सांकल बन जाऊ...!! न भेजो ऐसे परिवार प्रभु...! जहां जन्म से ही पराई कहाऊ...!! माँ बाबा को बोझ लागु मैं...! जहां  मौल से मैं ब्याही जाऊ...!! न भेजो ऐसे संसार प्रभु...! जहां खुद को सलामत न पाऊ...!! हर एक  आँख  से घूरी जाऊ मैं..! और हर गली मैं दबोची जाऊ...!! न भेजो ऐसे अन्धकार प्रभु...! जहां  अंधे लोगो में गिनी जाऊ...!! रौशनी भरने की कोशिश करू मैं...! या खुद आग मैं जला दी जाऊ....!! न भेजो प्रभु .. न भेजो....!!! हम हमेशा कहते है.."SAVE GIRLS", " STOP FEMALE FOETICIDE".. पर क्या कभी आपने  सोचा है.. हम जिस बेटी को दुनिया में लाना चाहते है .. क्या वो हमारी दुनिया में सुरक्षित है..???

एक कदम और चलते है ।

आ चल एक कदम और चलते है ।  दूर डगर नापने की बात करते है ॥  फूलो को हाथो में समेट,  पानी से आकाश की रंगोली भरते है।।  एक कदम और चलते है ।। आ मिल शाम को भोर बनाये।  आ मिल जोर से शौर मचाये ॥  सुरों को धुनों की मिटटी से मलते है , आ चल एक कदम और चलते है ।। .....................  साथ चलते है ॥ 

जिन्दगी...........!!!!

कभी हसती हूँ..... तो कभी रोती हूँ ......!! तो कभी खुद को सांत्वना देती हूँ ......!! फिर दूजे ही पल खुद को बेसहारा पाती हूँ ......!! पता नहीं क्यों अब तो हर चीज को मुझसे बेर सा हो गया है......!! कहने को तो अपना पर.. नसीब ही गैर सा हो गया है.....!! कभी कोसती हूँ ओरो को जो मुझे समझ नहीं पाते ......!! तो कभी खुद को जो कभी सफल नहीं हो पाती हूँ ..........!! आईने में देखती हूँ खुद की ही आँखों को....!! कोरो में फसी पानी की बूंदों को .........!! या फिर यूँ कहिये..आँखों से ओझल हसी को ढूंडती हूँ......!! तो कभी खुद से ही घिन्ना के खुद को भी नहीं निहार पाती हूँ......!! अब तो एक एक पल बहूत भरी सा लगता है.......!! रात को सुबह कर और सुबह को रात का इंतज़ार रहता है.....!! मन में बस यही बात रहती है.......!! किसी तरह ये रात कट जाये ....... !! बस किसी तरह ये दिन निकल जाये.......!! जिन्दगी ने इतनी ठोकर दी है.....!! की अब तो जीने की वजह भी नहीं ढूंड पाती हूँ.......!!