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व्यथा !!

समस्याओं की अव्य्वस्था और समाधान का संशय............ एक व्यथा !!
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पुरुषत्व ..!!

मेरे अभिमान को अहंकार का नाम देने से पहले अपने पुरुषत्व की परिभाषा बदल, ये तेरे द्वारा दिए गए अनुभवों का  ही परिणाम हैं ।।

निश्चय..!!

प्रारंभिक भोर में लिया दृढ़ निश्चय, शंध्या आते विफलता की चौखट लांघ लेता है.!! प्रतिबिम्ब सा मन ओज से भरा, परिस्तिथियों से तल्लीन खुद को अधीन बना लेता है। !!

एक कदम और चलते है ।

आ चल एक कदम और चलते है ।  दूर डगर नापने की बात करते है ॥  फूलो को हाथो में समेट,  पानी से आकाश की रंगोली भरते है।।  एक कदम और चलते है ।। आ मिल शाम को भोर बनाये।  आ मिल जोर से शौर मचाये ॥  सुरों को धुनों की मिटटी से मलते है , आ चल एक कदम और चलते है ।। .....................  साथ चलते है ॥ 

ढीठ.. !!!!

जो तू अड़ियल, तो मैं भी ढीठ  बड़ी ! जो तू सामन्त, तो मैं  भी सैठ  बड़ी !! मत कर जतन उलझाने की मुझे ! जीतेगी तो तुझसे मेरी ऐंठ  बड़ी !!

दुविधा...!!!!

मन ऐसो मेलन भरा, ते तन सुच्चो कैसो कहाय ...! जे सोचु हरी ते पाप हरे, ते पूजन न सुहाय ...!! ऐसो दुविधा सांस लगी, न निति कोई सुझाय ...! तर जाऊ मैं पाप ते, या खुद ने देउ डुबोय ....!!

शर्म........!!!!!

 जरा उड़ान क्या भरी मेरे मन ने  की लोग कहने लगे .. नादान लड़की क्या तुझे शर्म नहीं आती। लड़की है तू संभल जा  तो पूछती हूँ मैं भी इन समझदारो से, गला जब तुम मेरी खुशियों का घोटते हो तो क्या  तुम्हे शर्म नहीं आती , शर्म है  क्या कोई बताये इन्हें भी जो इल्जाम बेशर्मी का लगाते  हैं  लड़की को जब तड़पाते हैं तब तमाशा देखने में ये ही आगे हैं। और शर्म हैं क्या मुझे सिखाते हैं। जाओ पहले देखो अपने अन्दर .. बंद करके कहना शर्म नहीं आती  शर्म नहीं आती। By Santoshi Rawat. TGT Science Teacher New Delhi