कब तक यूं खूनी दलदल में, धंसा रहेगा मनुज समाज ! कब तक औरत को रौंदेगा, ये दहेज का कुटिल रिवाज ! कब तक इस समाज में अंधी, रीत चलाई जाएगी ! कब तक नारी यूं दहेज की, बली चढाई जाएगी ! नारी पूजा, नारी करुणा, नारी ममता, नारी ज्ञान ! नारी आदर्शों का बंधन, नारी रूप रंग रस खान ! नारी ही आभा समाज की, नारी ही युग का अभिमान ! वर्षों से वर्णित ग्रंथों में, नारी की महिमा का गान ! नारी ने ही प्यार लुटाया, दिया सभी को नूतन ज्ञान ! लेकिन इस दानव दहेज ने, छीना नारी का सम्मान ! उसके मीठे सपनों पर ही, हर पल हुआ तुषारापात ! आदर्षों पर चलती अबला, झेले कदम कदम आघात ! चीखें उठती उठकर घुटती, उनका क्रंदन होता मौन ! मूक बना है मानव, नारी का अस्तित्व बचाए कौन ! कब तक वो यूं अबला बनकर, चीखेगी चिल्लाएगी ! कब तक नारी यूं दहेज की, बली चढ़ाई जाएगी ! इस समाज में अब लडकी का, बोझ हुआ देखो जीवन ! नहीं जन्म पर खुशी मनाते, होता नहीं मृत्यु का गम ! एक रीति यदि हो कुरीति, तो सब फैलें फिर अपने आप ! इस दहेज से ही जन्मा है, आज भ्रूण हत्या सा पाप ! वो घर आंगन को महकाती, रचती सपनों का संसार ! पर निष्ठुर समाज नें उसको, दिय...
इच्छाशक्ति ...!!!